Friday, July 6, 2018

क्या नीतीश कुमार से पहले भाजपा उन्हें झटका देने वाली है?

बिहार की सियासत में एक बार फिर उथल-पुथल की संभावना प्रबल दिख रही है. दिल्ली और पटना के बीच दूरी बढ़ती जा रही है. हर दिन खबरें आ रही हैं कि नीतीश कुमार नया रास्ता तलाश रहे हैं. लेकिन सुनी-सुनाई इससे एकदम अलग है. दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में बैठने वाले भाजपा के कुछ बड़े नेताओं को कहते सुना गया है कि बिहार में एक बार फिर कुछ ऐसा होगा जो बेहद चौंकाने वाला होगा.

अमित शाह और उनकी टीम ने 2019 के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से लड़ने का उपाय संघ के शीर्ष नेतृत्व पर छोड़ा गया है. इसी सिलसिले में हाल में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की संघ प्रमुख मोहन भागवत से दिल्ली में लंबी मुलाकात हुई थी.


बिहार को लेकर भाजपा में दो तरह की बातें चल रही हैं. अमित शाह के कुछ करीबी नेताओं का मानना है कि अगर बिहार में चुनाव जीतना है तो आमने-सामने की लड़ाई से बचना चाहिए. पिछली बार भाजपा को बिहार में 40 में से 22 सीटें मिली थीं. भाजपा की सहयोगी पार्टियां रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी को छह सीटें और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी तीन सीटों पर जीत गई थी. इस तरह 2014 के बिना नीतीश कुमार के 31 सीटें एनडीए के खाते में आई थीं.

बिहार की खबर रखने वाले एक भाजपा नेता का कहना है कि पिछले चुनाव में भाजपा और सहयोगी इसलिए 31 सीटें जीते क्योंकि भाजपा विरोधी वोट का जबरदस्त बंटवारा हुआ. लालू की पार्टी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी और नीतीश कुमार अकेले दम पर चुनाव लड़ने उतरे. वोट प्रतिशत के हिसाब से एनडीए को 39 फीसदी वोट मिले और बदले में 31 सीटें हाथ आईं. लालू यादव के गठबंधन को 30 फीसदी वोट मिले और सिर्फ सात सीटें ही मिल पाईं. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को 2014 में 16 फीसदी वोट मिले लेकिन सिर्फ दो सीटें मिली. इतने आंकड़े गिनाने के बाद ये भाजपा नेता कहते हैं, ‘बिहार में भाजपा के लिए सबसे सुखद परिस्थिति यही होगी कि लालू यादव की पार्टी अलग चुनाव लड़े और नीतीश कुमार की पार्टी अलग चुनाव मैदान में उतरे.’

पटना से खबर आ रही है कि नीतीश कुमार के संबंध भाजपा से बिगड़े जरूर हैं लेकिन, लालू परिवार से तो उनका ऐसा छत्तीस का आंकड़ा बैठ गया है कि अब महागठबंधन की सभी संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं. जेडीयू के एक नेता कहते हैं, ‘नीतीश कुमार भी इस धर्मसंकट को समझते हैं इसलिए पार्टी का कोई भी नेता शिवसेना की तरह मोदी-अमित शाह पर सीधा हमला नहीं बोलता. 2019 तक जेडीयू संभल-संभलकर चलेगी. 2014 में मोदी विरोध की वजह से नीतीश कुमार को कुछ इलाकों में मुस्लिम वोट भी मिले थे, इस बार वह वोट भी उनसे छिटक चुका है.’

दिल्ली में भाजपा नेताओं का एक गुट है जो जबरदस्त तरीके से नीतीश कुमार से संबंध तोड़ने की पैरवी कर रहा है. इस गुट में ज्यादातर नेता लोकसभा के सांसद हैं और कुछ तो मोदी सरकार में मंत्री भी हैं. उन्हें लगता है कि अगर राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन से इस बार आमने-सामने का मुकाबला हो गया तो वो चुनाव हार भी सकते हैं. सुनी-सुनाई है कि ऐसे चिंतित सांसदों की संख्या एक-दो नहीं दस से ज्यादा बताई जाती है. ये सांसद बार-बार अलाकमान को ये सुझाव दे रहे हैं कि बिहार में भाजपा सिर्फ तिकोना मुकाबले में ही ज्यादातर सीटें जीत सकती है. उदाहरण के तौर पर ये नेता हाल ही में हुए उपचुनावों का वोट प्रतिशत बताते हैं और बताते हैं कि नीतीश कुमार से गठबंधन करने में ज्यादा नुकसान है और अगर नीतीश अकेले चुनाव में उतरे तो भाजपा को ज्यादा फायदा हो सकता है.

दिल्ली में भाजपा नेताओं का नीतीश विरोधी कैंप भी उतना ही मजबूत है जितना पटना में नीतीश समर्थक भाजपा नेताओं का कैंप, इसलिए अमित शाह पूरी जमीन हकीकत भांपना चाहते हैं. भाजपा की खबर रखने वाले एक विश्वस्त सूत्र की मानें तो भाजपा को सीट बंटवारे को लेकर सबसे ज्यादा परेशानी बिहार में होने वाली है. नीतीश कुमार इतनी सीटें जरूर चाहते हैं कि उनकी प्रतिष्ठा बनी रही और भाजपा अपनी एक भी पुरानी सीट नीतीश की झोली में डालने के मूड में नहीं दिखाई दे रही है. भाजपा इस वक्त वही सीटें जनता दल यूनाइटेड को देना चाहती है जो वह 2014 में हार गई थी.

ऐसे में नीतीश कुमार की पार्टी के नेताओं का तर्क भी सही दिखता है. उनका कहना है कि जो सीटें भाजपा 2014 की मोदी लहर में नहीं जीत पाई थी वे सीटें 2019 में जेडीयू कैसे जीत सकती है. नीतीश कुछ ऐसी सीटें मांग रहे हैं जो 2009 के वक्त जनता दल यूनाइटेड के पास थीं, लेकिन जिन पर वे 2014 में हार चुके हैं. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘अपने सांसद या मंत्री का टिकट काटकर भाजपा अपने कोटे की सीटें नीतीश कुमार को दे दे, अभी इतनी अच्छी दोस्ती भी नहीं हुई है. नीतीश को तो उल्टे ये सोचना चाहिए कि जो नौ सीटें भाजपा और उसके सहयोगी पिछली बार हारे थे उसमें से सिर्फ दो सीटों पर ही नीतीश की पार्टी नंबर एक रही बाकी 7 में से सिर्फ दो सुपौल और मधेपुरा की सीट पर ही जनता दल यूनाइटेड का उम्मीदवार नंबर दो रहा था. मधेपुरा पर भी शरद यादव चुनाव लड़े थे जो अब नीतीश से अलग हो चुके हैं. इस हिसाब से तो नीतीश ज्यादा से ज्यादा चार सीटें ही मांगने के हकदार हैं, दो सीटें जो वो पिछली बार जीते थे और दो सीटें वो जिसपर वो नंबर दो रहे थे.’

बिहार से जो खबर मिली है उसके मुताबिक नीतीश कुमार कम से कम 10-12 सीटें जरूर चाहेंगे और इससे कम पर गठबंधन टूट सकता है. भाजपा में एक ऐसा गुट सक्रिय है जो नीतीश को एनडीए से बाहर करना चाहता है ताकि बिहार में तीनतरफा मुकाबला हो. इन नेताओं को नीतीश के साथ नहीं, नीतीश और लालू दोनों की पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने में जीत की उम्मीद दिखती है.